“धर्म”
से “कर्म” इसलिए महत्वपूर्ण
है,
क्यों
की -
“धर्म” करके भगवान से मांगना पडता है,जबकि “कर्म” करने से भगवान को खुद ही देना पडता है ॥
“धर्म” करके भगवान से मांगना पडता है,जबकि “कर्म” करने से भगवान को खुद ही देना पडता है ॥
मैं
बड़ो कि इज़्जत इसलिए करता
हु,क्यूंकि
उनकी अच्छाइया मुझसे ज़्यादा
है..और
छोटो से प्यार इसलिए करता
हु,क्यूंकि
उनके गुनाह मुझसे कम है….
“इंसान” एक दुकान है, और ”जुबान”उसका ताला…!!
जब ताला खुलता है, तभी मालुम पड़ता है…
कि दूकान ‘सोने’ कि है, या ‘कोयले’ की…!!
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